Saturday, June 9, 2012

  • कोई खुशियों की चाह में रोये, कोई दुःख की पनाह से रोये। अजीब सिलसिला हे इश्क और मोहब्बत का, कोई वफ़ा के लिए रोये, कोई वफ़ा कर के रोये।


  • मेरे पैरों की मुसाफत के मुकद्दर में नहीं। जो रास्ता तेरे घर की तरफ जाता है।

  • नहीं मालूम कब से है ताल्लुक तुमसे ये अपना, तुम्हारा अक्स था दिल मैं तुम्हारे नाम से पहले।


  • जो काँप उठता था मुझे गंवाने के खौफ से, वो छोड़ गया मुझे ज़माने के खौफ से। दुनिया मैं कुछ ख़ास नहीं हैं हम, जी रहे हैं बस मर जाने के खौफ से। हमारी मिसाल उन फूलों सी है, जो खिले ही नहीं मुरझाने के खौफ से।

Wednesday, May 2, 2012

साँस को छोड़ दिया जिस तरफ जाना चाहे .


उसी की तरहा मुझे सारा ज़माना चाहे ,
वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे ?.  

मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा ,
ये मुसाफिर तो कोई और ठिकाना चाहे .  

एक बनफूल था इस शहर में वो भी ना रहा, 
कोई अब किस के लिए लौट के आना चाहे . 

ज़िन्दगी हसरतों के साज़ पे सहमा-सहमा, 
वो तराना है जिसे दिल नहीं गाना चाहे .  

हम अपने आप से कुछ इस तरह हुए रुखसत, 
साँस को छोड़ दिया जिस तरफ जाना चाहे .
क्या मिला तुम्हें सोचो हमें अजमाने में,
आग   लग   गई सोचो  हर  तरफ  ज़माने में ,
तुम तो चार  दिन  में  ही  अपना  होंसला खो बैठे,
उम्र  बीत  जाती  है  रूठने  मनाने में 
तुमने  सब  लुटा  दिए  अश्क  मेरी  पलकों  के  
एक  जमाना लगता  है आईने  सजाने  मैं  
आज  सभी  मशरूफ  हैं  फर्क  सिर्फ  है  इतना 
कोई घर  सजाने  मैं  कोई  घर  लुटाने  मैं 
आज  दिल  है  दीवाना उसका  रुख  न  पहचाना 
 साजिशें भी  शामिल  हैं  जिसके  मुस्कुराने  मैं.

अब बस जिंदा हूँ, तो जिंदा हूँ |

दिल में आंसू का सैलाब लिए चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
मन में दबे कुछ ग़मों का समंदर लिए चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
चेहरे पर खुशियों के झरने लिए चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
आँखों में तेरी बेचैन यादों के साए लिए चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
तेरी मीठी बातों का पुलिंदा सर पर लिए चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
तेरी खिलखिलाती हंसी सीने से लपेटे चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
हर आह में तुझसे बिछड़ने का दर्द लिए चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
हर पल तेरी यादों के दरिया में डूबा हुआ चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
एक तू ही तो है जिसकी एक झलक को खोजता चलता हूँ, तो जिंदा हूँ |
बस तेरी एक झलक को खोजता हुआ चलता हूँ,  तो जिंदा हूँ |
अब बस जिंदा हूँ, तो जिंदा हूँ |

Thursday, April 26, 2012

अमीरी की तो ऐसी की, कि अपना घर लुटा बैठे ,
फकीरी की तो ऐसी की, कि उस के घरमे जा बैठे...

तुम्हें हम कम समझते हैं

"ग़मों को आबरू अपनी ख़ुशी को गम समझते हैं ,
जिन्हें कोई नहीं समझा उन्हें बस हम समझते हैं,
कशिश ज़िन्दा है अपनी चाहतों में जान ए जाँ क्यूँकी ,
हमें तुम कम समझती हो तुम्हें हम कम समझते हैं ....."

General

आसमा को क्या ख़बर दुश्वारियाँ क्या थीं ,
इक सितारा दूंढ़ने में दिन निकल आया