"ग़मों को आबरू अपनी ख़ुशी को गम समझते हैं , जिन्हें कोई नहीं समझा उन्हें बस हम समझते हैं, कशिश ज़िन्दा है अपनी चाहतों में जान ए जाँ क्यूँकी , हमें तुम कम समझती हो तुम्हें हम कम समझते हैं ....."
ज़िन्दगी के सभी रास्ते एक थे ,सबकी मंज़िल तुम्हारे चयन तक रही, अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद् ,मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं , प्राण के प्रश्न पर प्रीति की अल्पना,तुम मिटाती रहीं मै बनाता रहा, तुम गज़ल बन गई, गीत में ढल गई,मंच से मै तुम्हे गुनगुनाता रहा....