क्या मिला तुम्हें सोचो हमें अजमाने में,
आग लग गई सोचो हर तरफ ज़माने में ,
तुम तो चार दिन में ही अपना होंसला खो बैठे,
उम्र बीत जाती है रूठने मनाने में
तुमने सब लुटा दिए अश्क मेरी पलकों के
एक जमाना लगता है आईने सजाने मैं
आज सभी मशरूफ हैं फर्क सिर्फ है इतना
कोई घर सजाने मैं कोई घर लुटाने मैं
आज दिल है दीवाना उसका रुख न पहचाना
साजिशें भी शामिल हैं जिसके मुस्कुराने मैं.
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