ज़िन्दगी के सभी रास्ते एक थे ,सबकी मंज़िल तुम्हारे चयन तक रही,
अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद् ,मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं ,
प्राण के प्रश्न पर प्रीति की अल्पना,तुम मिटाती रहीं मै बनाता रहा,
तुम गज़ल बन गई, गीत में ढल गई,मंच से मै तुम्हे गुनगुनाता रहा....
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